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शनिवार, 21 मई 2016

देवों से नर का परिचय

!!!---: देवों से नर का परिचय :---!!!
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यह सर्वविदित है कि सर्व विद्या का आदि स्रोत ब्रह्मा है । ब्रह्मा से इन्द्र ने सर्व विद्या प्राप्त की । इन्द्र ने बृहस्पति को दिया । बृहस्पति से ऋषि भरद्वाज को वैदिक विद्या प्राप्त हुई । ऋषि भरद्वाज ने यह अमूल्य विद्या विद्वान् ब्राह्मणों को दी । ब्राह्मणों ने सर्व जगत् के कल्याण के लिए यह विद्या सामान्य जनों में प्रचारित और प्रसारित कर दी ।

इन्द्र देवराज इन्द्र माने जाते हैं । वे शक्ति के प्रतीक है । आर्यों ने इन्हीं को अपना प्रेरणा स्रोत माना है । इस यह भी पता चलता है कि आर्य शक्ति और विद्या के अगाध भण्डार होते हैं ।

जब तक इस आर्यावर्त्त देश में इन्द्र प्रेरणा के स्रोत रहे हैं, तब तक यह देश शत्रुओं से सुरक्षित रहा है । सम्पूर्ण संसार में किसी की हिम्मत नहीं थी कि इस आर्य भूमि को आँख उठाकर भी देख सके । सभी इस आर्यावर्त्त की शक्ति को मानते, जानते और नमन करते थे ।

समय बदला, शिक्षा बदली और हम भी बदल गए । वैदिक शिक्षा नष्टप्राय हो गई । आर्ष विद्या लुप्त हो गई ।

लोग धर्म के नाम पर मनमाना करने लगे । जिसके जी में जो आया, वह किया ।

धीरे-धीरे इन्द्र गौण होते गए । उसके स्थान पर विष्णु आते गए । ऐसा नहीं है कि विष्णु वैदिक देवता नहीं है । वे वैदिक देवता ही है । किन्तु जैसे-जैसे पुराण का प्रचार होने लगा, वैसे-वैसे विष्णु के गुण बदलने लग गए । वैदिक काल में वे न्याय के देवता थे, जो दुष्टों को दण्डित करते थे और सज्जनों को पुरस्कृत करते थे । किन्तु पौराणिक जगत् में विष्णु विलासप्रिय हो गए , जो क्षीर सागर में निवास करते हैं, वैकुण्ठ में रहते हैं । गलती करने वाले को भी माफ कर देते हैं यदि वह गंगा स्नान कर लें, ब्राह्मणों को भोजन करा दे, गौ सेवा कर दे तो चोर, बेइमान, दुष्ट , राक्षस सबको माफ कर देते हैं ।

इस सोच ने लोगों को बुराइयाँ करने के लिए उकसाया । अब लोग बुराइयाँ करने से नहीं हिचकिचाते हैं । क्योंकि हजार बुराइयाँ करो और पण्डों को भोजन करा दो , गंगा स्नान कर लो, गया में पिण्ड दान कर दो । सभी बुराइयाँ माफ ।

यहाँ तक जो पौराणिक पण्डित होते हैं, उनके अन्दर भी हजार बुराइयाँ हो, लोग उनसे हवन, यज्ञ कराते ही है । इस तरह से सामान्य जनों में बुराइयाँ खूब बढी ।

यही कारण है कि वैदिक धर्म में स्त्री को बहुत सम्मान प्राप्त है किन्तु व्यावहारिक जीवन में इसका उलटा है । क्योंकि लोग अब इन्द्र से नहीं डरते, वरुण से नहीं डरते हैं । अब तो उन्हें बधियार प्राप्त है कि रोज बुराइयाँ करो, किन्तु एक गंगा स्नान अवश्य कर लो और पण्डों को जिमा दो , बस सब बुराइयाँ माफ हो जाएगी ।

देखिए, सोच से क्या नहीं बदलता । जब हम इन्द्र को अपना प्रेरणा स्रोत मानते थे, तो हम से शत्रु डरते थे । जब हमने इन्द्र को छोडकर विलास वाले रूप को विष्णु को देवता व प्रेरणा स्रोत मानने लग गए तो अब शत्रु हमसे नहीं डरते, बल्कि हम उनसे डरते हैं ।

इसमें एक अन्य सबसे कारण कारण "अवतारवाद" भी रहा है । वैदिक काल में हम सुकर्मा थे। अपना कार्य स्वयं करते थे । हमें किसी के आगे हाथ पसारने की आवश्यकता नहीं थी । पौराणिक काल में इसका उलटा हो गया । हम अब ये मानने लग गए कि कोई शत्रु यदि हम पर आक्रमण करता है तो भगवान् बचाने आएँगे । अब हमें दुःखी होने की आवश्यकता नहीं है, हमें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि दुःखी जनों की रक्षा के लिए , धर्म की रक्षा के लिए भगवान् समय समय पर आते रहते हैं ।

इस सोच ने हमें डरपोक, कायर, पंगु, कामचोर, आलसी बना दिया । अब हम इतने भीरु हो गए कि सोमदेव के मन्दिर को भी नहीं बचा पाए । उस समय भी हमारे वीर क्षत्रिय होते थे । उनको पण्डों, पुरोहितों ने यह कहकर भगा दिया कि सोमदेव के मन्दिर को बचाने के लिए भगवान् आएँगे । इतिहास गवाह है कि सोमदेव के मन्दिर को मुसलमानों ने अपवित्र किया, लूटा, खसोटा, मूर्तियों पर पेशाब और पैखाना कर दिया । सारा धन बल्कि अकूत धन वे लूट कर ले गए, किन्तु कोई भी देवता, कोई भी भगवान् उन दुष्टों को दण्डित करनेै के लिए नहीं आया ।


यह एक उदाहरण है । ऐसे लाखों मन्दिर लूट लिए गए, मूर्तियाँ अपमानित और अपवित्र कर दी गईं, किन्तु कोई भी भगवान् उन्हें बचाने नहीं आया । हमें रोना आता है, जब हमारे विद्या के भण्डार नालन्दा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय जला दिया गया ।

क्या आपको पता है कि वेदों की 1131 शाखाएँ थीं । अब दुःख के साथ कहना पडता है कि इनमें से अव केवल छिन्न-भिन्न अवस्था सात-आठ शाखाएँ ही बची हैं । यह एक केवल बानगी है । ऐसे कितने शास्त्र और ग्रन्थ नष्ट कर दिए गए, जला दिए गए । किसी पौराणिक पण्डित को न तो रोना आया, न तो कोई दुःख हुआ ।


पौराणिक तो ये कहते रहे कि वेद हमारे पास है ही नहीं, वह तो राक्षस ले गया । वाकई राक्षस ही ले गया था । बडी कोशिश करके स्वामी दयानन्द जी महाराज ने जर्मनी से वेद की प्रतियाँ मँगवाई ।

पौराणिक वेदों की पूजा करते हैं, किन्तु स्वाध्याय नहीं करते, वेद व्यास की गद्दी बनाते है और उसकी आराधना करते हैं, किन्तु उनसे पूछों कि वेद कितने होते हैं, उन्हें नहीं पता ।

पौराणिकता के कारण ही हम 1000 वर्षों तक गुलाम रहे । गुलामी क्या होती है किसी बन्धक से पूछों या हमारे मान्य स्वतन्त्रता की जीवनी देख लो, कितने कष्ट उठाए थे उन लोगों ने ।



अब समय आ गया है कि शक्ति के प्रतीक इन्द्र को अपना देवता और प्रेरणा स्रोत मानो, शक्ति इकट्ठी करो, और शत्रुओं से लोहा लेने के लिए तैयार हो जाओ । शत्रुओों से हमारी रक्षा भगवान् करने नहीं आएँगे, ये उनका काम नहीं हैं, हमें खुद ही अपनी रक्षा करनी होगी । अपनी माँ-बहन बेटियों की रक्षा खुद करनी पडेगी, उन्हें सम्मान देना पडेगा, व्यावहारिक जीवन में भी उनकी रक्षा करनी पडेगी । ईसाइ, इस्लाम, बौद्ध और जैनियों की तरह मत रहो । शरीर में शक्ति जुटाओ और शत्रुओं को बता दो कि हम आर्य हैं और हमें अपनी रक्षा करना बखूबी आता है । शत्रु हमसे डरे ना कि हम शत्रु से डरे ।
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