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महर्षि दयानन्द सरस्वती कृत "व्यवहारभानु" से उद्धृत ।
संकलनकर्ता :---- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
एक किसी अधर्मी मनुष्य ने किसी अधर्मी बजाज की दुकान पर जाकर जाकर कहा कि यह वस्त्र कितने आने गज देगा ? वह बोला कि 16 आने । तुम भी कुछ कहो ।
बजाज और ग्राहक दोनों जानते थे कि यह दस आने गज का कपड़ा है, परंतु अधर्मी झूठ बोलने में कभी नहीं डरते ।
ग्राहक :--- छः आने गज दो और सच-सच लेने देने की बात करो ।
बजाज :--- अच्छा तो तुमको दो आने छोड़ देते हैं । 14 आने दो ।
ग्राहक :--- है तो टोटा, परंतु सात आने ले लो ।
बजाज :--- अच्छा तो सच सच कहूं ?
ग्राहक :---हां ।
बजाज :--- चलो एक आना टोटा ही सही, 13 आने दे दो तुमको लेना हो तो लो ।
ग्राहक :--- मैं सत्य सत्य कहता हूं कि इसका आठ आने से अधिक कोई भी तुमको ना देगा ।
बजाज :---तुमको लेना हो तो लो, ना लेना हो तो मत लो ।परमेश्वर की सौगंध । बारह आने का तो मुझको पड़ा है, तुमको भला मनुष्य जान कर दे देता हूं । संकलनकर्ता :---- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
ग्राहक :---धर्म की सौगंध, मैं सच कहता हूं । मुझको देना हो तो दे, पीछे पछतावेगा । मैं तो दूसरे की दुकान से ले लूंगा । क्या तुम्हारी एक ही दुकान है ? नौ आने गज दे दो, नहीं तो मैं जाता हूं ।
बजाज :-_- तुमने कभी ऐसा कपड़ा खरीदा भी है ? नौ आने गज लाओ, मैं ₹100 का लेता हूं ।
ग्राहक धीरे धीरे चला कि मुझ को बुलाता है अथवा नहीं ।बजाज तिरछी नजरों से देखता रहा कि देखें यह लौटता है या नहीं ?
जब वह ना लौटा तब बोला, "सुनो इधर आओ ।"
ग्राहक :--- क्या कहते हो नौ आने का दोगे ?
बजाज :--- ऐ लो, धर्म से कहता हूं कि 11 आने भी दोगे ?
ग्राहक :--- साढ़े नौ आने ले लो । कहकर कुछ आगे चला ।बजाज ने समझा कि यह हाथ से गया ।
बजाज :-++ अभी इधर आओ, आओ ।
ग्राहक :--+ क्यों तुम देर लगाते हो । व्यर्थ समय जाता है ।
बजाज :--- मेरे बेटे की सौगंध ! तुम इसको ना लोगे तो पछताओगे । अब मैं सत्य ही कहता हूं । साढ़े दस आने दे दो, नहीं तो तुम्हारी राजी । संकलनकर्ता :---- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
ग्राहक :---- मेरी सौगंध ! तुमने दो आने अधिक लिए हैं । अच्छा 10 आने देता हूं । इतने का है तो नहीं ।
बजाज :--- अच्छा सवा दस आने भी दोगे ?
ग्राहक :--- नहीं नहीं,
बजाज :---अच्छा लाओ, बैठो कितने गज लोगे ?
ग्राहक :--- सवा गज ।
बजाज :---अजी, कुछ अधिक लो ।
ग्राहक :---- अच्छा नमूना ले जाते हैं । अब तुम्हारी दुकान देख ली । फिर कभी आएंगे तो बहुत लेंगे ।
बजाज ने नापने में कुछ सरकाया ।
ग्राहक :--- अजी देखें तो, तुमने कैसे नापा ?
बजाज :--- क्या विश्वास नहीं करते हो ? हम साहूकार हैं या ठट्ठा हैं ? हम कभी झूठ कहते और करते हैं ।
ग्राहक :--- हां जी, तुम बड़े सच्चे हो । ₹1 कह कर 10 आने तक आए । छः आने घट गए । अनेक सौगंध खाई ।
बजाज :--- वाह जी, वाह । तुम बड़े सच्चे हो ? छः आने का कहकर 10 आने तक देने को तैयार हो । अनेक सौगंध खा खाकर आए । सौदा झूठ के बिना कभी नहीं हो सकता ।
ग्राहक :----तू बड़ा झूठा है ।
बजाज :---क्या तू नहीं है ? क्योंकि एक गज कपड़े के लिए कोई भी भला मनुष्य इतना झगड़ा करता है ?
ग्राहक :--- तू झूठा, तेरा बाप झूठा । हमारी सात पीढ़ी में कोई झूठा नहीं हुआ है । संकलनकर्ता :---- योगाचार्य डॉक्टर प्रवीण कुमार शास्त्री
बजाज :---तू झूठा तेरी सात पीढ़ी भी झूठी । ग्राहक ने ले जूता, एक मार दिया । बजाज ने चट गज मारा । अड़ोसी पड़ोसी दुकानदारों ने जैसे-तैसे छुड़ाया ।
बजाज :--- चल चल । जा तेरे जैसे लाखों देखे हैं ।
ग्राहक :--- चल बे, तेरे जैसे जुआ चोर टट्टू जिए । दुकानदार मैंने करोड़ों देखें ।
अड़ोसी पड़ोसी :---अजी झूठ के बिना कभी सौदा भी होता है ? जाओ जी, तुम अपनी दुकान पर बैठे और जाओ तुम अपने घर को ।
बजाज :--- यह बड़ा दुष्ट मनुष्य हैं ।
ग्राहक :--- अबे सुन । मुख संभाल के बोल ।
बजाज :-- तू क्या कर लेगा ?
ग्राहक :---तेरा जो मैंने किया, सो तन्ने देख लिया और कुछ देखना हो तो दिखाता हूं ।
बजाज :--- क्या तू गज से ना पीटा जाएगा ? फिर दोनों लड़ने को दौड़े ।
जैसे तैसे लोगों ने दोनों को अलग अलग कर दिया । ऐसे ही सर्वत्र झूठे लोगों की दुर्दशा होती है ।