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मंगलवार, 1 नवंबर 2016

ब्रह्मचर्य की महिमा



!!!---: ब्रह्मचर्य की महिमा :---!!!
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दयानन्द का निश्छल व निश्चल विश्वास था कि ब्रह्मचर्य के बिना मनुष्य का किसी प्रकार का कल्याण साधित नहीं हो सकता, चाहे वह शारीरिक हो वा मानसिक हो, आर्थिक हो वा आध्यात्मिक ।

जैसे ब्रह्मचर्य के बिना राजा के लिए सुप्रणाली के अनुसार राज्य शासन करना असम्भव है और शरीर के लिए सुसन्तान उत्पन्न करना असम्भव है, वैसे ही ब्रह्मचर्य के बिना जाति-विशेष का उन्नयन और अभ्युत्थान भी असम्भव है ।

(१.) भारत की महिमा का मूल क्या था ???
:----"ब्रह्मचर्य ।"

(२.) हिन्दुओं की जिस गरीयसी प्रतिभा को देखकर प्राचीन यूनान और रोम आश्चर्यान्वित हो गए थे, उसका हेतु क्या था ???
:----"ब्रह्मचर्य ।"



(३.) जो उपनिषदादि अनुपम और उपादेय ग्रन्थमाला के रचयिता थे, वे कौन थे ???
:----"ब्रह्मचारी ।"

(४.) रामायण और महाभारत के जिस अलौकिक सौन्दर्य को देखकर मनुष्य-मण्डली अवाक् रह जाती है, उसके सृष्टिकर्त्ता कौन थे ???
:----"ब्रह्मचारी ।"

(५.) अर्थनीति, युद्धनीति, व्यवहारनीति और धर्मनीति के प्रवर्तक कौन थे ???
:----"ब्रह्मचारी ।"

(६.) गम्भीर विचारशीलता और तत्त्वानुसन्धान के अद्भुत क्षेत्रस्वरूप सांख्यमीमांसा की रचना जिन्होंने की ???
:----"ब्रह्मचारियों ने ।"

(७.) पाणिनि का पुनरुद्धार साधनपूर्वक भाषानुवाद, साहित्य-विज्ञान के पथ का प्रचारक कौन था ???
:----"एक ब्रह्मचारी ।"



(८.) वैदिक विद्या के पुनरुद्दीपन में आत्मोत्सर्ग करके नए युग का प्रवर्तक कौन था ???
:----"एक ब्रह्मचारी ।"

सुतराम् देखा जाता है कि भारतभूमि का जो कुछ सम्बल , जो कुछ गौरव , जो कुछ प्रतिष्ठा थी, उसके मूल में ब्रह्मचर्य ही विद्यमान था, अतः जबतक ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान होता रहेगा, तक भारत के विलय होने की सम्भावना नहीं है ।

जब तक ब्रह्मचारी का अभ्युदय होता रहेगा, तब तक आर्य जाति के लिए निराश होने का कोई कारण नहीं है ।

यह निश्चय है कि यदि आर्यावर्त्त फिर जागेगा तो ब्रह्मचर्य के प्रभाव से जागेगा ।

यदि इन पददलित-परानुग्रहजीवी हिन्दुओं का पुनरुत्थान होगा तो ब्रह्मचारियों के द्वारा ही होगा ।

यदि आर्यों का प्रनष्ट गौरव फिर कभी वापस आकर चमकेगा तो ब्रह्मचर्य की महिमा से ही चमकेगा, क्योंकि बल, वीर्य, मेधा, धारणाशक्ति, नीरोगता और शारीरिक पराक्रम जिस प्रकार ब्रह्मचर्य पर निर्भर है, मनुष्य की आशा, उत्साह, अध्यवसाय, कष्टसहिष्णुता, श्रमशीलता, तितिक्षा अटल प्रतिज्ञता आदि का सञ्चार और परिपुष्टि भी उसी प्रकार ब्रह्मचर्य पर निर्भर है,



जैसे दयानन्द अपने जीवन में निष्कलंक ब्रह्मचर्य का परिचय देकर अपनी विद्या, पाण्डित्य और प्रतिभा आदि विषय में असाधारणत्व को प्रतिष्ठित कर गए हैं, वैसे ही वे अपने जीवन में ब्रह्मचर्य को सर्वोच्च आसन पर स्थापित करके इस देश का महान् उपकार कर गए हैं ।

मुरादाबाद के स्वर्गीय राजा जयकिशन दास ने कहा----

"जिस जोर, जिस उत्साह और जिस आग्रह के साथ स्वामी जी ब्रह्मचर्य की आवश्यकता का प्रतिपादन करते थे, उस प्रकार से इस विषय पर बोलते हुए हमने किसी को नहीं सुना ।"



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