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शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

हिन्दू-समाज का अजगर

!!!---: हिन्दू-समाज का अजगर :---!!!
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हिन्दू-समाज एक भग्न-मन्दिर के समान है, जिसके एक पार्श्व में पौराणिक धर्म रूपी एक बहुवृद्ध, जराग्रस्त आजगर पडा हुआ है ।

उसके सामने भला-बुरा,, उत्कृष्ट-निकृष्ट, शुद्ध-अशुद्ध जो कुछ भी पदार्थ आ जाता है, वह उसे ही उदरस्थ कर लेता है और यही घोषणा करता है---

यह भी मेरा है, वह भी मेरा है ।

यही कारण है कि पौराणिक हिन्दुओं ने बुद्ध तक को अवतार श्रेणी में मिलाकर अपने पूज्य देवों में सम्मिलित कर लिया है और वह बौद्ध धर्म को भी हिन्दू-धर्म कहकर घोषणा करने में यत्नशील है । यही कारण है कि जहाँ हिन्दू प्रकृत हिन्दू शिक्षा के हिन्दूपन को स्वीकार करते हैं, वहाँ गुरुनानक परिवर्तित धर्म को भी हिन्दूमत के अन्तर्गत मानने को उद्यत हैं ।

यही कारण है कि जिन गौरांगदेव ने ---यदि कृष्ण को भजेगा तो मोची भी शुद्ध हो जाएगा----इत्यादि वचन कहकर वर्णभेद की प्रथा पर कुठाराघात किया । हिन्दुओं ने उन्हें भी अवतार दल में मिला लिया और वैष्णवों ने गौरांग के अनुयायियों को अपने पक्ष के उपासकों के बीच में अन्यतम उपासक बताकर ग्रहण कर लिया है ।

हम समझते हैं कि पौराणिक धर्मरूपी बहुवृद्ध अजगर ने अब तक ब्राह्मसमाज को भी अपने उदर में डाल लिया होता यदि ब्राह्मलोगों की अवलम्बित विवाह-पद्धति ने बहुत बडा अन्तर उपस्थित न कर दिया होता ।
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सिंधु घाटी के लोग मनाते थे दीपावली

!!!---: सिंधु घाटी के लोग मनाते थे दीपावली :---!!!
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सिन्धु घाटी सभ्यता के कई प्राचीन नगरों को ढूंढ निकाला गया है। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग १००० स्थानों का पता चला है। इन स्थनों में प्रमुख हड़प्पा (पाकिस्तान), मोहनजोदड़ो... (पाकिस्तान), चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा, सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा, अलीमुराद (सिन्ध प्रांत), कच्छ (गुजरात), रंगपुर (गुजरात), मकरान तट (बलूचिस्तान), गुमला (अफगान-पाक...सीमा) आदि है।

८००० वर्ष प्राचीन है हड़प्पा सभ्यता : अंग्रेजों की खुदाई से माना जाता था कि २६०० ईसा पूर्व अर्थात आज से ४६१६ वर्ष पूर्व इस नगर की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल निर्धारण... किया गया है लगभग २७०० ई.पू. से १९०० ई. पू. तक का माना जाता है। आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर नए तथ्‍य सामने रखे हैं। वैज्ञानिकों के...मुताबिक यह सभ्यता ५५०० साल नहीं बल्कि ८००० साल पुरानी थी। इस लिहाज से यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। मिस्र की सभ्यता ७००० ईसा पूर्व से ३००० ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण... मिलते हैं, जबकि मोसोपोटामिया की सभ्यता ६५०० ईसा पूर्व से ३१०० ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी। शोधकर्ता ने इसके अलाव हड़प्पा सभ्यता से १००० वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले हैं ।



वैज्ञानिकों का यह शोध प्रतिष्ठित रिसर्च पत्रिका नेचर ने प्रकाशित किया है। २५ मई २०१६ को प्रकाशित यह लेख दुनियाभर की सभ्यताओं के उद्गम को लेकर नई बहस छेड़ सकता है। वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी की पॉटरी की नई सिरे से पड़ताल की और ऑप्टिकली स्टिम्यलैटड लूमनेसन्स तकनीक का इस्तेमाल कर इसकी उम्र का पता लगाया तो यह ६००० वर्ष पुराने निकले हैं। इसके अलावा अन्य कई तरह की शोध से यह पता चला कि यह सभ्यता ८००० पुरानी है ।

वैज्ञानिकों की इस टीम के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी में भी था। उन्होंने भिर्राना की एकदम नई जगह पर खुदाई शुरू की और बड़ी चीज बाहर लेकर निकले। इसमें जानवरों की हड्डियां, गायों के सिंग, बकरियों, हिरण और चिंकारे के अवशेष मिले। डेक्कन कॉलेज के अराती देशपांडे ने बताया इन सभी के बारे में कार्बन १४ के जरिये जांच की गई। जिससे यह पता चला की उस दौर में सभ्यता को किस तरह की पार्यावरणीय स्थितियों का सामना करना पड़ा था। सिंधु सभ्यता की जानकारी हमें अंग्रेजों के द्वारा की गई खुदाई से ही प्राप्त होती है , जबकि उसके बाद अन्य कई शोध और खुदाईयाँ हुई है. जिसका जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं किया जाता। इसका मतलब यह कि इतिहास के ज्ञान को कभी अपडेट नहीं किया गया, जबकि अन्य देश अपने यहाँ के इतिहास ज्ञान को अपडेट करते रहते हैं। यह सवाल की कैसे सिंधु सभ्यता नष्ट हो हो गई थी । इसके जवाब में वैज्ञानिक कहते हैं कि कमजोर मानसून और प्राकृतिक परिस्‍थितियों के बदलाव के चलते यह सभ्यता उजड़ गई थी। 


 
क्या क्या मिला हड़प्पा और मोहनजोदेड़ों से :----
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सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में पकी हुई मिट्टी के दीपक प्राप्त हुए हैं और ३५०० ईसा वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता की खुदाई में प्राप्त भवनों में दीपकों को रखने हेतु ताख बनाए गए थे व मुख्य द्वार को प्रकाशित करने हेतु आलों की शृंखला थी  मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं। इससे यह सिद्ध स्वत: ही हो जाता है कि यह सभ्यता आर्य सभ्यता थी। 
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से कपड़ों के टुकड़े के अवशेष, चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें की वस्तुएँ मिले है। यहाँ के लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और वे लोहे का उपयोग करते थे । इसका मतलब यह कि वे लोहे के बारे में भी जानते थे। यहाँ से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है। हड़प्पा नगर के उत्खनन से तांबे की मुहरें प्राप्त हुई हैं।  इस क्षेत्र की भाषा की लिपि चित्रात्मक थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर हाथी, गैंडा, बाघ और बैल अंकित हैं। हड़प्पा के मिट्टी के बर्तन पर सामान्यतः लाल रंग का उपयोग हुआ है। मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल स्नानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते थे। 
मोहनजोदेड़ो की खुदाई में इस नगर की इमारतें, स्नानघर, मुद्रा, मुहर, बर्तन, मूर्तियाँ, फूलदान आदि अनेक वस्तुएँ मिली हैं। हड़प्पा सभ्यता के मोहजोदड़ो से  कपड़ों के टुकड़े के अवशेष, चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें और लोहे की वस्तुएँ मिली है। यहाँ से काला पड़ गया गेहूँ, तांबे और कांसे के बर्तन, मुहरों के अलावा चौपड़ की की गोटियाँ, दीए, माप तौल के पत्थर, तांबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी, खिलौने, दे पाट वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन और पत्‍थर के औजार भी मिले हैं। यहाँ खेती और पशुपालन संबंधी कई अवशेष मिले हैं। बताया जाता है कि सिंध के पत्थर और राजस्थान के तांबें से बने उपकरण यहाँ खेती में इस्तेमाल किए जाते थे। हल से खेत जोतने का एक साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता के कालीबंगा में भी मिले हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर हाथी, गैंडा, बाघ और बैल अंकित हैं। हड़प्पा के मिट्टी के बर्तन पर सामान्यतः लाल रंग का उपयोग हुआ है। यहाँ से खुदाई में प्राप्त अवशेषों और नगर से दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता का पता चला जिसे बाद में सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया गया। 

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