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बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

मन्त्र और उसका विनियोग-1

!!!---: वेदमन्त्र और उनका विनियोग :---!!!
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वेदों का आविर्भाव कर्म और कर्मयोग के लिए हुआ है । वेदों को समझने के लिए एवं सृष्टि एवं सर्वनियन्ता को समझने के लिए ऋषियों ने वेदाङ्गों की रचना की । इसी परम्परा में उपाङ्गों, उपवेद, आरण्यक, उपनिषद् और ब्राह्मण-ग्रन्थों की रचना हुई ।

मन्त्रों का विनियोग केवल ऋषि ही कर सकते हैं, अन्य नहीं । जो कोई मनुष्य करता है तो क्षुद्रता और स्वार्थ अवश्य होगा । आजकल स्वार्थी और अपढ लोग वेद-मन्त्रों का विनियोग करते देखे जाते हैं । प्राचीन ब्राह्मण-प्रवक्ता सब वेदार्थ -वेत्ता और ऋषि थे । अतः उनका कर्मकाण्ड मन्त्रार्थ का प्रकाशक होने से पूर्णरूपेण ग्राह्य है । महर्षि दयानन्द इस तथ्य स परिचित थे । इसलिए वेद ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में शतपथादि ब्राह्मण-ग्रन्थों को ऋषिकृत वेदभाष्य लिखते हैं ।

("यानि पूर्ववदेवे विद्वद्भिः----शतपथादि भाष्याणि शङ्कासमाधानादिविषय ।" )

ऋषि दयानन्द निर्देश देते हैं कि मन्त्रार्थ का अनुसरण करने वाला विनियोग ही ग्राह्य है ।

कुछ पौराणिकों ने "शन्नो देवीरभिष्टय" मन्त्र में "शन्नो" शब्द देखकर शनिदेव की परिकल्पना कर ली । यह नितान्त मूर्खता है । वस्तुतः यह दो शब्दों से मिलकर बना है ---"शम् और नः" इसी प्रकार अन्य अनेक विनियोग किए गए हैं । हम एक-एक कर अन्य ऊटपटांग विनियोग आगे बताते रहेगे ।


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